Ad

खेती किसानी

कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

भारतीय कृषि इतिहास में प्रकृति प्रदत्त जीव जंतुओं के खेती किसानी में उपयोग लेने संबंधी तमाम प्रमाण मौजूद हैं। बिसरा दिए गए ये वे प्रमाण हैं जिनको पुनः उपयोग में लाकर, किसान मित्र खेती की उर्वरता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य रक्षा मिशन में, देश-दुनिया के साथ हाथ बंटा सकते हैं।

कृषक करते हैं भेड़ के झुंड का इंतजार खाद के बदले किसान करते हैं भुगतान प्रकृतिक ड्रोन ऐसे करते हैं प्रकृति की मदद

भारत के धर्म शास्त्र एवं पुराण में योनिज और आयोनिज जैसे दो वर्गों में विभाजित 84 लाख योनियों का उल्लेख किया गया है। इन समस्त जीव योनियों के प्रति भारत में सम्मान का भाव रखने की सीख बचपन से दी जाती है। कुल 84 लाख योनियों से जनित जीवों के जीवन चक्र में बगैर खलल डाले, सहज प्राकृतिक चक्र के मुताबिक जीवन उपभोग की सामग्री जुटाने की कृषि विधियां भी भारत में बखूबी पल्लवित हुईं। गायों की सेवा कर बछड़ा, दूध, दही, मक्खन, छाछ और धरती के सर्वोत्कृष्ट खाद्य पदार्थ घी की उत्पत्ति के अलावा सर्प (सांप) नियंत्रण तक की मान्य विधियां भारत के गौरवमयी इतिहास का हिस्सा रही हैं। चींटी को दाना देने से लेकर कौओं तक को भोजन समर्पित करने की परंपरा भी भारतीय जीवन दर्शन की बड़ी उपलब्धि है। भारतीय कृषि इतिहास में प्रकृति प्रदत्त जीव जंतुओं के खेती किसानी में उपयोग लेने संबंधी तमाम प्रमाण मौजूद हैं। बिसरा दिए गए ये वे प्रमाण हैं जिनको पुनः उपयोग में लाकर, किसान मित्र खेती की उर्वरता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य रक्षा मिशन में देश-दुनिया के साथ हाथ बंटा सकते हैं।

ये भी पढ़ें: जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

आधुनिक कृषि के दुष्परिणाम

दुष्परिणामों को आधुनिक कृषि में उपयोग में लाए जा रहे खेती किसानी के तरीकों से बखूबी समझा जा सकता है। निश्चित ही ट्रैक्टर, रसायन, उपचारित बीजों जैसे आधुनिक कृषि तरीकों से किसान को कम समय में बंपर पैदावार के साथ ज्यादा कमाई हासिल हो रही हो, लेकिन उसके उतनी तेज गति से दुष्परिणाम भी हो रहे हैं। आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने के कारण खेत की उपजाऊ क्षमता के साथ ही, पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मानव स्वास्थ्य से जुड़े अध्ययनों में रसायन प्रयुक्त उपज उत्पाद के सेवन से मानव की औसत आयु के साथ ही उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ रही है। ऐसे में आधुनिक कृषि के मुकाबले परंपरागत कृषि में अपनाए जाने वाले प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर मानव और प्रकृति स्वास्थ्य संबंधी संतुलन को बरकरार रखा जा सकता है। ट्रेक्टर से खेत की जुताई आसान जरूर है, लेकिन इससे खेत में मौजूद प्राकृतिक जीव जंतुओं के आवास (बिल, बामी आदि) के खराब होने का खतरा रहता है। कृषि में कैसे मददगार हैं जीव-जंतु आधुनिक ड्रोन तकनीक का खेती में भले ही नया मशीनी प्रयोग देख मानव आश्चर्यचकित हो, लेकिन तोतों, कौओं, गौरैया आदि के जरिये प्रकृति बगैर किसी तरह का प्रदूषण फैलाए अपना विस्तार करती रही है। बगैर डीजल, पेट्रोल बिजली के संचालित होने वाले पक्षी प्राकृतिक रूप से बीजारोपण आदि में प्रकृति का सहयोग प्रदान करते हैं। कीट प्रबंधन में भी पक्षी एवं अन्य जीव प्रकृति चक्र का अहम हिस्सा एवं सहयोगी कारक हैं।

ये भी पढ़ें: अब होगी ड्रोन से राजस्थान में खेती, किसानों को सरकार की ओर से मिलेगी 4 लाख की सब्सिडी

कृषि में पशुओं का महत्व

प्राकृतिक कृषि पद्धति में पशुओं का अहम स्थान है। बैल आधारित जुताई खेतों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी मानी गई है। ट्रैक्टर के बजाए हल से खेत जोतने पर खेत की मिट्टी की गहराई में मौजूद उर्वरा शक्ति नष्ट नहीं होती। ट्रैक्टर के मुकाबले पशु धुआं नहीं छोड़ते, पेट्रोल-डीजल नहीं पीते ऐसे में पर्यावरण संतुलन बनाने में भी मददगार साबित होते हैं। उल्टे इनके गोबर से खेत की उपजाऊ शक्ति में ही वृद्धि होती है।

भेड़-बकरी से कृषि में लाभ

भेड़-बकरी की इन विशेषताओं को जानकर अनभिज्ञ किसान भी मालवा, राजस्थान के किसानों की तरह इन पशुओं को पालने वाले पालकों और पशुओं का काफिला गुजरने का बेसब्री से इंतजार करने लगेंगे। मध्य प्रदेश में मालवा अंचल के किसान उनके खेतों के आसपास से गुजरने वाले भेड़, बकरी के समूहों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दरअसल, राजस्थान के भेड़ (गाटर), बकरी, ऊंट आदि मवेशियों को पालने वालों का समूह प्रतिवर्ष अपने मवेशियों को चराने के लिए मध्य प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरता है। मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के किसान यायावर जीवन जीने वाले इन पशु पालकों से उनके मवेशियों के झुंड को खेत में रोकने का अनुरोध करते हैं। इतना ही नहीं खेत के मालिक किसान, पशुपालकों को अनाज, कपड़े एवं रुपए तक पशुओं को खेत में ठहराने के ऐवज में प्रदान करते हैं।

भेड़ की लेंड़ी की शक्ति

आधुनिक किसानी में परंपरागत खेती का सम्मिश्रण कर जैविक, या फिर हर्बल पदार्थों एवं घोलों को खेत की मिट्टी में मिलाने की सलाह दी जाती है, हालांकि यह विधि भारत के लिए नई नहीं है। अनुभवी किसान भेड़ों के झुंड को इसलिए अपने खेतों में ठहरवाते हैं ताकि भेड़, बकरियों की लेंड़ियां खेत की मिट्टी में मिल जाएं। जंगली पत्ती, वनस्पति चारा खाने वाली भेड़-बकरियों की लेंड़ी में भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करने की अपार क्षमता होती है। ऐसे में बगैर किसी कृत्रिम तरीके से तैयार खाद के मुकाबले प्राकृतिक तरीके से ही खेत में भेड़-बकरी जनित जैविक खाद का सम्मिश्रण भी हो जाता है। शाजापुर जिले के खामखेड़ा ग्राम निवासी पवन कुमार बताते हैं कि, वे अपने दादा-परदादा के समय से खेतों में भेड़-बकरियों के झुंड को ठहरवाते देख रहे हैं। इससे खेत की उत्पादन क्षमता में प्राकृतिक तरीके से काफी वृद्धि होती है। यह हमारे लिए एक परंपरा बन चुकी है क्योंकि भेड़ पालक प्रति वर्ष हमारे इलाके से गुजरते हैं तो हमारे या आसपास के किसानों के खेतों पर अपना डेरा जमाते हैं।

जैविक खाद

मिट्टी की उर्वरा शक्ति में चींटी, केंचुआ के अलावा अन्य दृश्य-अदृस्य सूक्षम जीवों की जरूरत एवं महत्व को जानकर अब अधिकतर किसान जैविक खाद के उपयोग को अपना रहे हैं। छोटे समझ में आने वाले चींटी और केंचुआ खेती के स्वास्थ्य के लिए खासे मददगार हैं। इनकी मदद से भूमि का भुरभुरापन कायम रहता है वहीं कीट रक्षा प्रबंधन में भी ये किसान का प्राकृतिक रूप से हाथ बंटाते हैं।

ये भी पढ़ें: एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

पेड़ों का महत्व

खेत का दायरा बढ़ाने के लिए आज के कृषक खेत के उन फलदार पेड़ों को काटने में भी गुरेज नहीं करते, जिन्हें उनके दूरदर्शी पूर्वजों ने बतौर विरासत सौंपा था। मौसम में इन पेड़ों से जहां फल के रूप में आय सुनिश्चित रहती है, वहीं फल, पत्ती, छाल, लकड़ी आदि से भी अतिरिक्त आय किसान को होती रहती है। अमरूद, आम, बेर, बांस, करौंदा, बेल, कैंथा, जामुन आदि के पेड़ों को खेत की मेढ़ के आसपास करीने से लगाकर किसान अपनी अतिरिक्त आय सुनिश्चित कर सकता है। इन पेड़ों पर पक्षियों का बसेरा होने से कीट-पतिंगों के नियोजन में भी किसान को मदद मिलती है। या यूं कहें कि पक्षियों के निवास के कारण कीट-पतिंगे खेत के पास कम ही फटकते हैं।

आधुनिक तरीकों का समावेश

प्राकृतिक कृषि पद्धिति में आधुनिक तरीकों का सम्मिश्रण कर किसान खेती को कम लागत वाला भरपूर मुनाफे का धंधा बना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सख्त भूमि, अनाज की ढुलाई आदि कृषि कार्य में ट्रैक्टर आदि की मदद ली जा सकती है। क्यारी एवं टपक सिंचन विधि में आधुनिक तरीकों का उपयोग कर उसे और लाभदायक बनाया जा सकता है। रासायनिक पदार्थों की जगह गौपालन, भेड़-बकरी पालन कर जैविक खाद का खेत पर ही उत्पादन कर प्राकृतिक चक्र बरकरार रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

कृषि में संगीत का सहारा

कृषि में म्यूजिक का भी तड़का लगाते देखा जा रहा है। देश-विदेश के कई किसानों ने खेतों में समय आधारित राग-रागनियों की ध्वनि पैदा कर उपज पैदावार में वृद्धि के दावे किए हैं। आवाज की रिकॉर्डिंग आधारित उपकरणों एवं लाउड स्पीकर से कुत्तों या जिन जानवरों से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मवेशी डरते हैं की आवाज निकालकर खेतों की जानवरों से सुरक्षा की जा सकती है।

इस राज्य सरकार ने आल इन वन तरह का कृषि ऐप जारी कर किसानों का किया फायदा

इस राज्य सरकार ने आल इन वन तरह का कृषि ऐप जारी कर किसानों का किया फायदा

आधुनिक युग में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कृषि योजनाओं की जानकारी प्राप्त करने अथवा आवेदन के लिए किसान भाईयों को ई-मित्र केंद्र अथवा कृषि विभाग के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। क्योंकि, राजस्थान में खेती-किसानी करने वालों के लिए राज किसान एप पर ऐसी विभिन्न सुविधाएं मुहैय्या कराई गई हैं। सीधी सी बात है, अगर कृषि क्षेत्र की प्रगति एवं विकास-विस्तार होगा तो किसान भी की उन्नत और खुशहाल होंगे। सरकार इसको बरकरार रखने के लिए किसानों की निरंतर रूप से हर संभव सहायता करती है। इसलिए किसानों के हित में विभिन्न कृषि योजनाएं भी चलाई जाती हैं, जिसके माध्यम से बीमा, लोन एवं अनुदान आदि का फायदा प्राप्त होता है। इन योजनाओं से जुड़कर किसान भाई अपने आर्थिक हालातों को अच्छा कर सकते हैं। परंतु, कृषि योजनाओं के विषय में जानकारी इकट्ठी करना एवं आवेदन करना किसान भाइयों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। बहुत बार किसानों को कृषि विभाग से लेके ग्राम पंचायत कार्यालय के चक्कर तक काटने पड़ते हैं। इन सभी स्थितियों से किसानों को छुटकारा दिलाने के लिए फिलहाल राज्य सरकारें मोबाइल एप्लीकेशन जारी कर रही हैं। इसी कड़ी में राजस्थान सरकार की तरफ से भी राज किसान एप्लीकेशन जारी किया गया है।

केवल एक क्लिक से मिलेगी सभी योजनाओं की जानकारी

राजस्थान सरकार की तरफ से प्रदेश के किसानों के लिए राज किसान एप्लीकेशन जारी किया गया है। इसके अंतर्गत कृषि विभाग से लेकर बागवानी एवं पशुपालन विभाग की नई-पुरानी समस्त योजनाओं की जानकारी चढ़ा दी जाती है। किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए राज किसान एप पर स्व-पंजीकरण का विकल्प दिया गया है। मललब कि फिलहाल किसान भाई अपना पंजीकरण करके सीधे कृषि योजनाओं हेतु आवेदन कर सकते हैं।

क्षतिग्रस्त फसल की शिकायत भी यहीं दर्ज होगी

राज किसान साथी पोर्टल को पूर्णतया किसानों के हिसाब से बनाया गया है। इसमें फसल बीमा क्लेम से लेकर ब्याज की जानकारी, ऑनलाइन अदायगी के साथ फसल क्षति की शिकायत भी दर्ज करवाई जा सकती हैं। यह भी पढ़ें: जानें भारत विश्व में फसल बीमा क्लेम दर के मामले में कौन-से स्थान पर है इन समस्त कार्यों हेतु कृषि विभाग द्वारा राज किसान एप पर फसल बीमा का कॉलम भी बनाया गया है। एक ही प्लेटफॉर्म पर यह समस्त सुविधाएं प्राप्त होने से ना केवल किसान का वक्त बचेगा, साथ ही, पैसे की भी बचत होगी।

कृषि से संबंधित सेवाओं की जानकारी प्रदान की गई हैं

राजस्थान के किसान केवल खेती-किसानी तक ही सीमित नहीं रहे हैं। साथ ही, दूसरी गतिविधियों से भी जुड़कर अच्छी आय कर रहे हैं। इसके लिए राज किसान साथी एप पर एग्री मशीनरी की बुकिंग, कीट-रोग प्रबंधन की जानकारी, उन्नत कृषि तकनीक, मिट्टी और पानी की जांच के लिए नजदीकी लैब, एग्रीकल्चर एंड प्रोसेसिंग, कृषि कार्यों की वीडिया, खाद्य उत्पादक और निर्यातकों की लिस्ट-मोबाइल नंबर, मशीनों की खरीद या किराए पर उठाने के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर्स की जानकारी, खाद उर्वरक व कीटनाशक विक्रेताओं की सूची एवं इसके उपयोग करने के तरीके की भी एप पर जानकारी दी गई है।
किसान मिर्च की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं

किसान मिर्च की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं

मिर्च खाने के लिए काफी अच्छी होती है। कैप्साइसिन रसायन मिर्च को काफी तीखा बनाता है, इसलिए यह ज्यादातर मसालों में इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च को सॉस, अचार एवं दवाई बनाने में भी उपयोग किया जाता है। मिर्च में विटामिन ए, सी, फास्फोरस एवं कैल्शियम काफी हैं। मिर्च एक नगदी उत्पाद है, इसे किसी भी जलवायु में उगाया जा सकता है। मिर्च की उन्नत खेती करके कृषक काफी अच्छा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। मिर्च की खेती करने के लिए बेहतर जल निकासी वाली दोमट अथवा बलुई मृदा चाहिए, जिसमें ज्यादा कार्बनिक पदार्थ होते हैं। लवण और क्षार युक्त भूमि इसके लिए ठीक नहीं है। खेत की तीन-चार बार जुताई करके तैयार करना चाहिए। 1.25 से 1.50 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर खेती की आवश्यकता होती है।

मिर्च के पौधे की बिजाई

बतादें, कि प्रति क्यारी 50 ग्राम फोरेट एवं सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। बीज को 2 ग्राम एग्रोसन जीएन, थीरम अथवा कैप्टान रसायन प्रति किलो ग्राम उपचारित करें। बीज को पंक्तियों में एक इंच के फासला पर बोकर मृदा एवं खाद से ढक दें। ऊपर पुआल अथवा खरपतवार से ढक देना चाहिए। बीज जमने के पश्चात खरपतवार को बाहर निकाल दें। मिर्च का पौधे की 25 से 35 दिन में बिजाई की जा सकती है। मिर्च को हमेशा रात को ही रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के दौरान कतार और पौधों में 45 सेमी का फासला होना चाहिए। 85 से 95 दिन में हरी मिर्च फल देने लायक हो जाती है। सूखी मिर्च के फल की तुड़ाई 140-150 दिन पर रंग लाल होने पर करनी चाहिए।

ये भी पढ़ें:
मिर्च की खेती करके किसान भाई जल्द ही कमा सकते हैं अच्छा खासा मुनाफा, इतना आएगा खर्च

खेत में उर्वरक और खाद की मात्रा

200 कुंतल गोबर अथवा कंपोस्ट, 100 कुंतल नाइट्रोजन, 50 कुंतल फास्फोरस और 60 कुंतल पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है। रोपाई से पूर्व कंपोस्ट में फास्फोरस की संपूर्ण मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दी जानी चाहिए। उसके पश्चात दो बार में शेष मात्रा दी जानी चाहिए। अगर कम वर्षा हो तो 10 से 15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फसल की फूल और फल बनने के दौरान सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई नहीं होने पर फल और फूल काफी छोटे हो जाते हैं। खेत को खरपतवार रहित रखना चाहिए, जिससे कि बेहतरीन उत्पादन हो सके।
इस महिला किसान को कृषि व पशुपालन में प्रगति के लिए मिला पुरुस्कार

इस महिला किसान को कृषि व पशुपालन में प्रगति के लिए मिला पुरुस्कार

खेती-किसानी के क्षेत्र में प्राचीन काल से पशुपालन विशेषकर गाय का विशेष महत्व रहा है। आज वंदना कुमारी दूध प्रसंस्करण के माध्यम से अच्छी कमाई कर अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। 

बतादें, कि वंदना कुमारी ने गौ-पालन शुरू करने का फैसला लेने से पहले दो बार नहीं सोचा। जीवन में बेहतर उपलब्धि हांसिल करने का उनका दृढ़ संकल्प ही था, जिसने उनको गौ-पालन प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया। 

एक गृहिणी के लिए जीवन में सब कुछ काफी सुगम नहीं था। कुछ नवीन करने के उनके जूनून ने समस्या और बाधाओं का सामना करने में काफी सहायता की। 

कृषि विज्ञान केन्द्र (KVK), बांका (बिहार) की मदद के फलस्वरूप बन्दना को पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सफल डेयरी किसान के तोर पर स्थापित करने में सहयोग प्राप्त हुआ। 

बतादें, कि 13 एकड़ कृषि योग्य जमीन और 8 एकड़ बंजर जमीन वाले परिवार में आय बढ़ाने के लिए अपने परिवार की मदद करना उनके लिए बड़ी मजबूरी थी। 

महिला किसान वंदना महिंद्रा समृद्धि अवार्ड से सम्मानित   

खेती में सक्रियता से भाग लेने के उपरान्त कृषि उत्पादकता को बेहतर करना वंदना का लक्ष्य बन गया था। बंदना ने साल 2011 में केवीके का भ्रमण करके और वैज्ञानिकों से मिलकर कृषि भूमि की उत्पादक क्षमता को बढ़ाने के संबंध में दिशा-निर्देश लिया। 

इसके पश्चात कृषि विज्ञान केन्द्र से उनका जुड़ाव काफी बढ़ता गया और उत्पादकता बढ़ाने के लिए केवीके के वैज्ञानिकों द्वारा समयानुसार सही सलाह दी गई। केवीके के वैज्ञानिकों की मदद से वह अपनी कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता में बढ़ोतरी करने में सफल हुई। 

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी द्वारा सबसे प्रभावशाली कृषि निर्माता अवार्ड से पुरुस्कृत लक्ष्य डबास की कहानी

वंदना ने समकुल बंजर जमीन में से 2.75 एकड़ को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करने में सफलता हांसिल की। एक नया कीर्तिमान स्थापित करने का जज्बा रखने वाली वंदना ने खेती के दौरान केवीके की तकनीकी मदद से वर्ष 2012 में एक धान ओसाई मशीन को विकसित किया। 

वंदना के नवाचार को परखते हुए एक विख्यात निजी कंपनी द्वारा महिंद्रा समृद्धि अवार्ड से उन्हें पुरस्कृत किया गया और सम्मान स्वरूप 51 हजार की नकद धनराशि प्राप्त हुई। 

महिला किसान वंदना की दूध प्रसंस्करण से तरक्की 

वंदना के गांव को National Innovative वित Climate Resilient Agriculture (NICRA) परियोजना के कार्यान्वयन हेतु चयन किया गया, जिसके तहत उन्होंने हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन, यूरिया से पुआल का उपचार, साइलेज बनाने के अतिरिक्त हरे चारे की उपज संबंधी तकनीकें सीखी और अपनाई। इसके अलावा कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों में भी हिस्सा लिया। 

NICRA परियोजना के अंतर्गत ग्रामीणों के लिए आयोजित किए जाने वाले कृषि गतिविधियों में बेहतर सहयोग देने के बाद वंदना ने विविधता लाने के लिए साल 2016 में गौपालन शुरू करने का निर्णय किया। 

उन्होंने अपने पिता (पेशे से पशु चिकित्सक) से पशुपालन की बारीकियां सीखीं जो वंदना को असलियत में डेयरी फार्मिंग के लिए प्रेरित करने वाला साबित हुआ, उन्होंने दूध देने वाली 10 गायों को खरीदकर नया उद्यम शुरू किया।

प्रत्येक गाय व चारा उत्पादित 7-10 लीटर दूध के साथ उनकी गोशाला में औसत दूध उत्पादन लगभग 70-80 लीटर प्रति दिन प्राप्त होता था। वह अपनी गोशाला में उत्पादित दूध की मात्रा से संतुष्ट थीं। 

लेकिन जब दूध बेचने की बात आई तो बंदना को खरीदार ढूंढने में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसी दौरान केवीके के जरिए से वंदना को फरवरी, 2020 में "आय बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पाद विकास" विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला, जिसका आयोजन पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, मोहनपुर, नदिया, पश्चिम बंगाल द्वारा किया जा रहा था।